संत सेनजी महाराज जीवन परिचय: Sen Maharaj Jivan Parichay In Hindi

संत सेनजी महाराज

संत सेनजी महाराज की जयंती वैशाख कृष्ण द्वादशी को मनाई जाती है, यह दिन अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति का होता है, जब वे संत सेनजी महाराज की पुण्य स्मृति में उनके जीवन और शिक्षाओं का स्मरण करते हैं। सेनजी महाराज भारतीय भक्ति परंपरा के महान संतों में से एक थे, जिनके जीवन का हर पहलू एक साधक के लिए मार्गदर्शक रहा है। उनका जीवन सेवा, भक्ति, और मानवता के प्रति प्रेम से ओतप्रोत था।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

संत सेनजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख कृष्ण-12 (द्वादशी) के दिन हुआ था, जो कि एक रविवार था। प्रियदास जी द्वारा रचित भक्तमाल में इनका जन्म वृत योग, तुला लग्न, और पूर्व भाद्रपक्ष में बताया गया है। उनके माता-पिता का नाम श्रीचंद्र और सुशीला (कहीं-कहीं कांता) था, और बचपन में उनका नाम नंदा रखा गया था। कुछ स्थानों पर उनके पिता का नाम चंदन्यायी भी बताया जाता है।

उनके जन्म के समय का बघेलखंड क्षेत्र, जिसमें बांधवगढ़ प्रमुख स्थान था, उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना। यह क्षेत्र बाद में सेनपुरा के नाम से जाना गया, जो कि मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के पास स्थित है। सेनजी महाराज के जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही उनमें भक्ति और आध्यात्मिकता के बीज अंकुरित हो गए थे। बचपन से ही वे सरल, विनम्र, और ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था रखने वाले थे।

परिवार और विवाह

सेनजी महाराज का विवाह विजयनगर के राज वैद्य शिवैया की सुपुत्री गजरा देवी से हुआ था। यह विवाह सेनजी महाराज के जीवन में एक संतुलन और स्थायित्व लाया, जिसमें उन्होंने गृहस्थ जीवन को ईश्वर की भक्ति और सेवा से जोड़ते हुए उच्च आध्यात्मिकता का निर्वाह किया। उनके पुत्र भद्रसेन भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए आध्यात्मिकता में अग्रसर हुए।

परिवार के साथ रहते हुए भी सेनजी महाराज ने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का पालन करने के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक साधना को निरंतर जारी रखा। उन्होंने इस बात का उदाहरण प्रस्तुत किया कि भक्ति और सेवा का मार्ग केवल सन्यास में ही नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

सेनपुरा: भक्ति का केंद्र

वर्तमान में सेनपुरा नाम से प्रसिद्ध स्थान, सेनजी महाराज का कर्मक्षेत्र रहा है। यह स्थान मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ क्षेत्र में स्थित है, जो कि अब रीवा के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र को तत्कालीन शासक वीरसिंह जूदेव ने बांधवगढ़ नाम दिया था। यह स्थान आज भी भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थान के रूप में पूजनीय है, जहां संत सेनजी महाराज के जीवन की अनगिनत घटनाओं का स्मरण किया जाता है।

बांधवगढ़ में सेनजी महाराज ने न केवल शासक की सेवा की, बल्कि साधु-संतों की संगति में अपनी भक्ति को और प्रखर किया। उनका जीवन एक उदाहरण था कि कैसे सांसारिक कर्तव्यों के साथ-साथ एक संत अपने आध्यात्मिक उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।

शासकीय सेवा और आध्यात्मिक जीवन

सेनजी महाराज की भक्ति और योग्यता देखकर बांधवगढ़ के शासक ने उन्हें अपनी सेवा में रखा। सेनजी महाराज नाई का कार्य करते थे, जिसमें राजा वीरसिंह की मालिश, बाल और नाखून काटने जैसे काम शामिल थे। हालांकि यह एक साधारण कार्य था, परंतु सेनजी महाराज की भक्ति ने इसे असाधारण बना दिया।

राजा के प्रति उनकी सेवा भावना के बावजूद, सेनजी महाराज का मन हमेशा ईश्वर की भक्ति में डूबा रहता था। एक बार, भक्तों की मंडली में शामिल होकर वे राजा के पास जाना भूल गए, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में स्वयं भगवान विष्णु ने राजा की सेवा की। इस घटना से राजा और नगरवासियों के बीच सेनजी महाराज की प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई।

दीक्षा और संत सेवा

सेनजी महाराज ने स्वामी रामानंद जी से दीक्षा प्राप्त की, जो भक्ति परंपरा के महान गुरु थे। रामानंद जी की शिक्षा ने सेनजी महाराज को न केवल आध्यात्मिक रूप से सशक्त किया, बल्कि उन्हें समाज में भक्ति का प्रचार करने का मार्ग दिखाया। दीक्षा प्राप्त करने के बाद, सेनजी महाराज ने साधु-संतों की सेवा को अपना धर्म बना लिया। वे सत्संग और प्रवचन के माध्यम से लोगों को भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य का मार्ग दिखाते थे।

उनकी शिक्षाओं में सबसे प्रमुख बात यह थी कि उन्होंने मानवता को एक रूप में देखा। उन्होंने हर जीव में भगवान के दर्शन किए और सत्य, अहिंसा, और प्रेम का संदेश दिया। उनकी शिक्षाओं ने समाज को एकता, शांति, और सद्भाव का संदेश दिया।

सेन महाराज और भक्ति का प्रसार

सेनजी महाराज विष्णु के अनन्य भक्त थे। उन्होंने भगवान विष्णु की उपासना करते हुए भक्ति के मार्ग को अपनाया और अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में भक्ति, वैराग्य, और सेवा की भावना को प्रोत्साहित किया। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि उनके अनुयायी उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे थे।

उन्होंने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति की शक्ति को महसूस किया और समाज के लोगों को सिखाया कि कैसे साधारण जीवन में भी भक्ति का मार्ग अपनाया जा सकता है। उन्होंने भक्ति के साथ ज्ञान और वैराग्य का संयोजन किया और इसे समाज में फैलाया।

काशी में अंतिम दिन

वृद्धावस्था में संत सेनजी महाराज काशी चले गए, जो कि भारतीय भक्ति और मोक्ष की राजधानी मानी जाती है। काशी में रहते हुए उन्होंने एक साधारण कुटिया में निवास किया और लोगों को सत्संग, प्रवचन और सेवा के माध्यम से भक्ति का मार्ग दिखाते रहे।

काशी में उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती गई, और उनका प्रभाव इतना बढ़ा कि लोग उन्हें महात्मा के रूप में मानने लगे। उन्होंने जीवन के अंतिम दिनों तक भक्ति, सत्य, अहिंसा और सेवा का संदेश फैलाया और समाज को भक्ति के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया।